यूपी के चित्रकूट की पावन धरती पर एक ऐसा मंदिर स्थित है, जिसकी आभा और आस्था दूर-दूर तक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. हम बात कर रहे हैं रामघाट के समीप स्थित चरखारी राधा-कृष्ण मंदिर की, जिसे सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि आस्था, इतिहास और चमत्कारों से जुड़ा जीवंत केंद्र माना जाता है, यह वही स्थान है जहां प्रभु श्रीराम ने वनवास काल का साढ़े ग्यारह वर्ष बिताया था.

पवित्र प्रेम और त्याग की प्रेरणादायक कहानी

इस दिव्य मंदिर का निर्माण 1700 से 1800 ईस्वी के बीच पन्ना स्टेट की महारानी रूप कुंवर द्वारा करवाया गया था. यह वही रूप कुंवर थीं, जिनके पति महाराज मलखान सिंह युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गए थे. पति की मृत्यु के उपरांत, महारानी ने सांसारिक मोह छोड़कर स्वयं को भगवान राधा-कृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया था, वे ठाकुर जी को बाल रूप में मानती थीं और दिनचर्या में उनकी सेवा उसी भाव से करती थीं जैसे कोई माता अपने बालक की सेवा करती है. यही भावना आज भी मंदिर में हर गतिविधि और सेवा में झलकती है.

संतान सुख की विशेष मान्यता

उन्होंने मंदिर की मान्यता के बारे में बताया कि यदि निःसंतान दंपत्ति यहां सच्चे मन से ठाकुर जी को बांसुरी अर्पित करें, तो उन्हें शीघ्र ही संतान सुख की प्राप्ति होती है. मंदिर परिसर के भीतर स्थित हवेली भी अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर है. यह राजा-महाराजाओं के समय की हवेली आज भी वैभव और भव्यता का प्रमाण है. बताया जाता है कि इस हवेली में तत्कालीन राजपरिवार रहा करता था और यहीं से मंदिर की सभी गतिविधियों का संचालन होता था. मंदिर में दूर दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं.